Bio Toilet: 11 साल मे 11 हजार बायो टॉयलेट लगे, अब रैल पटरी / प्लेटफार्म पर नहीं फैलेगी गंदगी

Bio Toilet: उत्तर पश्चिम रेलवे की सभी गाड़ियों के डिब्बों में लगाए गए 11 हज़ार बायो-टॉयलेट पटरी/प्लेटफार्म से गंदगी हटने के साथ ही हैं पर्यावरण अनुकूल

 

Bio Toilet: ऐलनाबाद , 20 जुलाई (रमेश भार्गव )

Bio Toilet: भारतीय रेलवे द्वारा ट्रेनों और आसपास के वातावरण को पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिये डिफेन्स रिसर्च एवं डेवलपमेंट संस्थान (डीआरडीओ) के तकनीकी सहयोग से सभी ट्रेनों के सवारी डिब्बो मे Bio Toilet लगाने का कार्य किया गया है। उत्तर पश्चिम रेलवे की सभी सवारी गाड़ियों के डिब्बों में लगभग 11 हज़ार बायो-टॉयलेट लगा दिए गए हैं।

उत्तर पश्चिम रेलवेके मुख्य जनसंपर्क अधिकारी कैप्टन शशि किरण ने बताया कि परंपरागत टॉयलेट से स्टेशनों एवं रेलवे ट्रैक पर अत्यधिक गंदगी को देखते हुए वर्ष 2013 से डिफेन्स रिसर्च एवं डेवलपमेंट संस्थान के तकनीकी सहयोग से सभी ट्रेनों के सवारी डिब्बो मे Bio Toilet लगाने का कार्य प्रारंभ किया गया था।

Bio Toilet एक संपूर्ण अपशिष्ट प्रबंधन समाधान है, जो बैक्टीरिया इनोकुलम की मदद से ठोस मानव अपशिष्ट को बायो-गैस और पानी में बदल देता है। समय-समय पर आवश्यकतानुसार मात्रा कम होने पर इन बैक्टीरिया को बायो टैंक मे डाला जाता है।

बायो-टॉयलेट का बचा हुआ पानी रंगहीन, गंधहीन और किसी भी ठोस कण से रहित होता है। इसके लिए किसी और उपचार/अपशिष्ट प्रबंधन की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे वातावरण पर्यावरण अनुकूल रहता है। बायो-टॉयलेट के प्रयोग से रेल लाइन पर अपशिष्ट पदार्थ एवं पानी नहीं गिरता है,

जिससे जंग आदि की समस्या नहीं होने से रेलवे ट्रैक की गुणवत्ता एवं उम्र में बढ़ती है। बायो-टॉयलेट के प्रयोग से कोच मेंटेनेंस स्टाफ को भी डिब्बे के नीचे अंडर फ्रेम में कार्य करते समय गंदगी और बदबू से राहत मिलती है।

कैप्टन शशि किरण ने बताया कि समय-समय पर इन बायो-टॉयलेट के उन्नयन हेतु भी प्रयास किये जा रहे हैं। इन बायो-टॉयलेट के उपयोग के दौरान यात्री फीडबैक एवं अन्य समस्याओं को दूर करते हुए कई बदलाव किये गए हैं जैसे की ‘‘पी’’ ट्रैप को ‘‘एस’’ ट्रैप मे बदला गया है,

इससे शौचालयों मे वाटर सील बन जाती है जिसके कारण बदबू की समस्या नहीं रहती है। साथ ही उचित वेंटिलेशन की भी व्यवस्था की गई है। चलती गाडियों मे इन शौचालयों मे आने वाली समस्या के तवरित निदान हेतु प्रशिक्षित कर्मचारियों को आवश्यक उपकरणों के साथ तैनात किया जाता है। शौचालयों मे कूड़ेदान की व्यवस्था भी की गयी हे ताकि कचरे का निपटान ठीक प्रकार से हो एवं बायो टॉयलेट चॉक न हो।

उन्होंने बताया कि इन Bio Toilet शौचालयों के सही तरह से कार्यशील व् पर्यावरण अनुकूल रखने हेतु निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थो की आवधिक जाँच की जाती है। इस जाँच हेतु विभिन्न मंडलों मे प्रयोगशाला स्थापित की गयी है। जयपुर में स्थापित प्रयोगशाला एनएबीएलआई प्रमाणित प्रयोगशाला है।

सभी यात्रियों से अनुरोध हे कि इन शौचालयों के सही तरह से कार्य करने हेतु रेलवे का सहयोग करें। यात्रीगण इन शौचालयों मे अख़बार, नैपकिन, बोतल, प्लास्टिक, पोलीबैग, कपडा, गुटके का पाउच, चाय के कप व् अन्य कचरा इत्यादि न डालें।

आवश्यकता होने पर शौचालय मे रखे कूड़ेदान का उपयोग करे। उपयोग के बाद कृपया फ्लश अवश्य चलाये एवं शौचालय को व्यर्थ ही गन्दा न करे। जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य निभाए, गंदगी के खिलाफ जंग में रेलवे की सहायता करें।

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