Bhajan Kaur Success Story: कर्ज लिया, खेत में प्रैक्टिस करती थीं भजन कौर….आज ओलिंपिक में मेडल जीतने का मौका

Bhajan Kaur Success Story: Haryana Archer Bhajan Kaur Latest News and Updats On esmachar.com

 

Bhajan Kaur Success Story: हरियाणा के सिरसा जिले से करीब 45 किलोमीटर एलनाबाद दूर ढाणी बचन सिंह गांव की एक बच्ची इसी गांव के स्कूल मे पहुंची थी। स्पोर्ट्स टीचर ने भजन कौर की लंबाई और तंदरुस्ती की देख कर टीचर ने उसे बुलाया और कहा, ” बेटी तुम शॉटपुट की तयारी करो।” शॉटपुट में करीब 4 किलो वजनी गेंद को दूर फेंकना होता है। बच्ची ने शॉटपुट में स्कूल और स्टेट लेवल तक मेडल जीत चुकी है।

बता दे की एक दिन भजन कौर के टीचर आर्चरी की किट लेकर आते है और धनुष थमा देते है। बच्ची ने ये परीक्षा भी पास कर ली। टीचर ने कहा, “अब से तुम यही गेम खेलोगी।” पहली बार धनुष उठाते वक्त 13 साल की रही वो बच्ची अब 18 साल की है। नाम है भजन कौर।

दोस्तों बता दें की आज हमारी बहन भजन कौर अब भारत की आर्चरी टीम में हैं। आज पेरिस ओलिंपिक 2024 में उनके पास मेडल पर निशाना लगाने का एक बेहद खास और सुनहरा मौका है। वे विमेंस इंडिविजुअल के प्री-क्वार्टर फाइनल में निशाना लगाएंगी। जीतने पर भजन क्वार्टर फाइनल, सेमीफाइनल और फाइनल यानी मेडल इवेंट तक पहुंच सकती हैं।

Bhajan Kaur Success Story: भजन कौर की कामयाबी का असर है कि गांव में बच्चे सुबह-शाम आर्चरी के प्रैक्टिस करने लगे हैं।

” title=”bhajan kaur”>bhajan kaur

भगवान सिंह, भजन के पिता ने भजन की आर्चरी में रुचि को देखकर खेत में आर्चरी रेंज तैयार करवाई और कर्ज लेकर उसे आवश्यक उपकरण दिलाए। भजन की मां, प्रीतपाल कौर, ने बताया कि भजन को आर्चरी इतनी पसंद है कि वह खाना भूल जाती है लेकिन प्रैक्टिस करना नहीं भूलती।

भजन की छोटी बहन कर्मवीर कौर और भाई यशमीत भी आर्चरी करने लगे। नचिकेतन पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर रंजीत सिंह संधू और उनके भाई परमिंदर सिंह ने भजन की आर्चरी में प्रतिभा को पहचाना और उसे प्रोत्साहित किया।

आज, भजन कौर की मेहनत और समर्पण ने उन्हें पेरिस ओलिंपिक में पहुंचा दिया है, जहां वे देश के लिए मेडल जीतने का सपना देख रही हैं। उनकी सफलता ने न केवल उनके परिवार को बल्कि पूरे गांव को गर्वित किया है।

Bhajan Kaur Success Story

भजन कौर का परिवार खेती करता है और वह जॉइंट फैमिली में रहती हैं। उनके पिता भगवान सिंह ने भजन की आर्चरी के प्रति बढ़ती रुचि को देखते हुए खेत में ही आर्चरी रेंज तैयार करवाई। भजन के स्टेट और नेशनल लेवल पर खेलने के लिए भगवान सिंह ने आढ़ती से कर्ज लेकर आवश्यक उपकरण दिलाए और बाद में अनाज बेचकर कर्ज चुकाया।

Bhajan Kaur Success Story: भगवान सिंह ने खुद भी आर्चरी सीखी

वह भजन और उसके भाई-बहनों की मदद कर सकें। भजन की प्रेरणा से उनकी छोटी बहन कर्मवीर और भाई यशमीत भी आर्चरी करने लगे। भगवान सिंह ने आर्चरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया से कोचिंग सर्टिफिकेट लिया और अब वे बच्चों को कोचिंग भी देते हैं।

भजन और उसके भाई-बहनों की आर्चरी में बढ़ती रुचि को देखते हुए भगवान सिंह ने खुद भी स्टेट और नेशनल फेडरेशन की तरफ से कोचिंग के सर्टिफिकेट कोर्स किए। अब वे भजन के साथ स्टेट और नेशनल टूर्नामेंट्स में जाते हैं और उसकी मदद करते हैं।

भगवान सिंह से बात हो ही रही थी तभी भजन कौर की मां प्रीतपाल कौर एक बैग ले आईं। इसमें भजन के जीते मेडल रखे हैं। प्रीतपाल कहती हैं, “भजन खूब मेहनत करती है। आर्चरी तो उसे बहुत पसंद है। वो खाना भूल जाएगी, पर प्रैक्टिस करना कभी नहीं भूलती। मेरी बेटी देश के लिए मेडल जीत कर लाएगी।”

Bhajan Kaur Success Story

Bhajan Kaur Success Story: भजन की छोटी बहन कर्मवीर कौर पहले डिस्कस थ्रो करती थीं।

कर्मवीर बताती हैं, “जब हमारे खेत में बच्चे प्रैक्टिस करने लगे तो मैंने डिस्कस थ्रो छोड़कर आर्चरी करना शुरू कर दिया। मेरा छोटा भाई भी मेरे साथ की प्रैक्टिस करता है।”

कर्मवीर ने आगे बताया कि भजन ने अपने दृढ़ निश्चय और समर्पण से पूरे परिवार को प्रेरित किया है। भगवान सिंह ने जो आर्चरी रेंज तैयार की थी, वह अब गांव के बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बन गई है। हर शाम यहां बच्चे प्रैक्टिस करने आते हैं और भगवान सिंह उन्हें कोचिंग देते हैं।

भगवान सिंह कहते हैं, “मुझे गर्व है कि मेरे बच्चे खेल में इतना अच्छा कर रहे हैं। भजन की मेहनत और लगन ने मुझे और भी प्रेरित किया है। मैंने अपनी बेटी के सपनों को साकार करने के लिए जो भी किया, वह सब उसके भविष्य के लिए था।”

भजन की मां प्रीतपाल कौर का कहना है कि भजन की सफलता ने पूरे परिवार को गर्व महसूस कराया है। “जब मैं अपनी बेटी को मेडल जीतते देखती हूं, तो मुझे लगता है कि हमारी मेहनत सफल हो गई है,” उन्होंने कहा।

Bhajan Kaur Success Story: भजन कौर और उनके परिवार की कहानी पूरे गांव के लिए प्रेरणा बन गई है।

उनके समर्पण और मेहनत की वजह से आज भजन का नाम राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है और उनका परिवार गर्व से कहता है कि उन्होंने एक चैंपियन को तैयार किया है।

भजन की फैमिली से मिलने के बाद हम ऐलानाबाद के नचिकेतन पब्लिक स्कूल पहुंचे। स्कूल के डायरेक्टर रंजीत सिंह संधू ने ही भजन के हाथ में पहली बार धनुष पकड़ाया था।

रंजीत इसकी कहानी बताते हैं, “मैं एक बार पटियाला में स्कूल के लिए स्पोर्ट्स का सामान लेने गया था। वहां आर्चरी की किट देखी। हमारे स्कूल में आर्चरी की प्रैक्टिस का इंतजाम नहीं था। मैंने इंडियन राउंड का एक एक्विपमेंट ले लिया। मुझे इसके बारे में ज्यादा पता नहीं था। ये भी था कि इसकी प्रैक्टिस किससे कराएं। मेरे छोटे भाई परमिंदर सिंह ने भजन को बुलाया और कहा कि इसे चलाओ। भजन ने बिल्कुल सही तरीके से एरो चलाया।”

रंजीत ने आगे कहा, “मैंने उससे कहा कि तुम आर्चरी भी करो। भजन के पिता को बुलाकर उनसे बात की। उनसे कहा कि आर्चरी के बारे में जानकारी जुटाओ। तभी हमें सिरसा में एक आर्चरी कोच के बारे में पता चला। वो हमारे स्कूल में शनिवार और रविवार को आकर बच्चों को कोचिंग देने के लिए राजी हो गए। ऐसे भजन के आर्चरी करियर की शुरुआत हुई। नेशनल खेलने के बाद उसका सिलेक्शन जमशेदपुर की टाटा एकेडमी में हो गया। वो वहां दीपिका कुमारी और अंकिता भगत के साथ ट्रेनिंग करती है।”

आर्चरी के लिए भजन को ही क्यों चुना? परमिंदर सिंह कहते हैं, “भजन की लंबाई अच्छी है, मुझे लगा कि दूसरे बच्चों के मुकाबले वो ये आसानी से कर सकती हैं। उसने हमें सही साबित किया। फिर हमें भी लगा कि हमें स्कूल में आर्चरी की प्रैक्टिस शुरू करना चाहिए। इस तरह हमारे यहां आर्चरी की शुरुआत हो गई।”

इस प्रकार, नचिकेतन पब्लिक स्कूल ने भजन कौर के आर्चरी करियर की नींव रखी। रंजीत सिंह संधू और परमिंदर सिंह की पहल और मार्गदर्शन ने भजन को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब भजन अन्य बच्चों के लिए एक प्रेरणा बन गई है, और उनकी कहानी ने गांव और स्कूल दोनों को गर्वित किया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button