बिज़नसब्रेकिंग न्यूज़
For the last 34 years, India has not allowed foreign companies to enter into its domestic contracts.
For the last 34 years, India has not allowed foreign companies to enter into its domestic contracts.
विश्व व्यापार संगठन ने लाख दबाव बनाया, लेकिन हमने अपनी आर्थिक अस्मिता दांव पर नहीं लगाई।
लेकिन रगों में सिंदूर बहाने वाली ये सरकार ब्रिटेन और अमेरिका के दबाव में फिर झुकी है।
ब्रिटेन के साथ इसी महीने होने वाले मुक्त व्यापार समझौते में ब्रिटिश और अमेरिकी कंपनियां भी रेलवे और डिफेंस जैसे क्षेत्रों में बोली लगाएंगी।
पूरे भारत में हर साल 700 से 750 बिलियन डॉलर के ठेके निकलते हैं।
समझौते के तहत 50 बिलियन डॉलर से बड़े ठेकों में दोनों देशों की कंपनियां बोली लगा सकेंगी।
ये सड़क बनाएंगी, माल और सेवा क्षेत्र में भी ठेके उठाएंगी।
आप इसे विदेशी मुल्कों की आर्थिक गुलामी कहें या फिर मेक इन इंडिया, थिंक ग्लोबल–गो फॉर लोकल–जैसे जुमलों की नाकामी।
भारत अब एक गुलाम देश है। बिका हुआ देश।