क्या मरने के बाद भी भरना पड़ेगा लोन क्या होती है? प्रकिया देखें यें रिपोर्ट
Updated: Apr 3, 2025, 21:29 IST
| लोन लेने वाले का निधन हो जाए तो बैंक किससे करेगा वसूली? जानें पूरा प्रक्रिया
नई दिल्ली, 3 अप्रैल 2025: बैंक से लोन लेना आज के समय में एक आम बात हो गई है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि अगर लोन लेने वाले व्यक्ति का निधन हो जाए तो उसका बकाया लोन कौन चुकाएगा?
यह सवाल कई लोगों के मन में उठता है, खासकर तब जब परिवार पहले से ही भावनात्मक और आर्थिक संकट से गुजर रहा हो। भारतीय बैंकिंग नियमों और कानून के तहत इस स्थिति में क्या होता है, आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
लोन के प्रकार और वसूली की प्रक्रिया
लोन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं - सिक्योर्ड (Secured) और अनसिक्योर्ड (Unsecured)। इन दोनों के आधार पर ही बैंक यह तय करता है कि बकाया राशि की वसूली कैसे की जाएगी।
सिक्योर्ड लोन (Secured Loan):
सिक्योर्ड लोन वह होता है जो किसी संपत्ति या गारंटी के बदले लिया जाता है, जैसे होम लोन, कार लोन या प्रॉपर्टी के खिलाफ लोन। अगर लोन लेने वाले की मृत्यु हो जाती है, तो बैंक सबसे पहले उस संपत्ति की ओर देखता है जो लोन के लिए गिरवी रखी गई थी।
उदाहरण के लिए, अगर होम लोन लिया गया था और प्रॉपर्टी बैंक के पास गिरवी है, तो बैंक उस प्रॉपर्टी को बेचकर अपनी बकाया राशि वसूल सकता है।
हालांकि, अगर मृतक के कानूनी वारिस (Legal Heirs) उस संपत्ति को अपने पास रखना चाहते हैं, तो उन्हें बैंक से बात कर बकाया राशि चुकाने की व्यवस्था करनी होगी। कई मामलों में बैंक EMI को रीस्ट्रक्चर करने या मोरेटोरियम (कुछ समय के लिए भुगतान स्थगित करने) का विकल्प भी दे सकता है।
अनसिक्योर्ड लोन (Unsecured Loan):
अनसिक्योर्ड लोन, जैसे पर्सनल लोन या क्रेडिट कार्ड डेट, में कोई संपत्ति गिरवी नहीं होती। अगर लोन लेने वाले का निधन हो जाता है और कोई को-एप्लिकेंट या गारंटर नहीं है, तो बैंक के पास कानूनी तौर पर मृतक के परिवार या वारिस से पैसे वसूलने का अधिकार नहीं होता। ऐसी स्थिति में बैंक बकाया राशि को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) के तौर पर राइट ऑफ कर देता है।
हालांकि, अगर लोन में को-एप्लिकेंट या गारंटर शामिल है, तो वसूली की जिम्मेदारी उन पर आती है।
को-एप्लिकेंट और गारंटर की
को-एप्लिकेंट: अगर लोन संयुक्त रूप से लिया गया था, जैसे पति-पत्नी ने मिलकर होम लोन लिया हो, तो प्राथमिक उधारकर्ता की मृत्यु के बाद को-एप्लिकेंट को बकाया राशि चुकानी होगी।
गारंटर: कुछ मामलों में लोन लेते समय गारंटर की जरूरत पड़ती है। अगर उधारकर्ता की मृत्यु हो जाती है और को-एप्लिकेंट नहीं है, तो गारंटर को लोन चुकाने की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
इंश्योरेंस का महत्व
कई लोन के साथ इंश्योरेंस पॉलिसी भी ली जाती है, जैसे होम लोन के साथ टर्म इंश्योरेंस या पर्सनल लोन के लिए क्रेडिट लाइफ इंश्योरेंस।
अगर उधारकर्ता की मृत्यु हो जाती है, तो इंश्योरेंस कंपनी बकाया लोन की राशि का भुगतान बैंक को कर सकती है। इससे परिवार पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता।
उदाहरण के लिए, अगर किसी ने 50 लाख रुपये का होम लोन लिया और इसके साथ इंश्योरेंस पॉलिसी थी, तो मृत्यु के बाद इंश्योरेंस कंपनी बकाया राशि का भुगतान कर देगी, और प्रॉपर्टी परिवार के पास सुरक्षित रहेगी।
कानूनी वारिस की स्थिति
भारतीय कानून के अनुसार, मृतक के कानूनी वारिस उसकी संपत्ति के हकदार होते हैं, लेकिन वे उधारकर्ता के कर्ज के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार नहीं होते, जब तक कि वे लोन के को-एप्लिकेंट या गारंटर न हों। हालांकि, अगर मृतक की संपत्ति वारिस को मिलती है, तो बैंक उस संपत्ति से कर्ज की वसूली की मांग कर सकता है, लेकिन यह केवल सिक्योर्ड लोन के मामले में लागू होता है।
अनसिक्योर्ड लोन में वारिस को कोई जिम्मेदारी नहीं लेनी पड़ती, और बैंक को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
परिवार को क्या करना चाहिए?
बैंक को सूचित करें: उधारकर्ता की मृत्यु के बाद परिवार को तुरंत बैंक को सूचित करना चाहिए।
मृत्यु प्रमाण पत्र (Death Certificate) जमा करना जरूरी होता है।
लोन एग्रीमेंट चेक करें: लोन के दस्तावेजों में यह देखें कि को-एप्लिकेंट, गारंटर या इंश्योरेंस का उल्लेख है या नहीं।
इंश्योरेंस क्लेम करें: अगर इंश्योरेंस पॉलिसी है, तो परिवार को इंश्योरेंस कंपनी से संपर्क कर क्लेम प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।
कानूनी सलाह लें: अगर कोई विवाद या असमंजस हो, तो कानूनी विशेषज्ञ से सलाह लेना उचित रहेगा।
बैंक की रणनीति
बैंक हमेशा अपनी राशि वसूलने की कोशिश करता है। सिक्योर्ड लोन में वह संपत्ति को नीलाम कर सकता है, जबकि अनसिक्योर्ड लोन में वह को-एप्लिकेंट या गारंटर पर दबाव डालता है। अगर कोई विकल्प नहीं बचता, तो लोन को NPA घोषित कर राइट ऑफ करना पड़ता है।
लोन लेने वाले की मृत्यु के बाद वसूली की प्रक्रिया लोन के प्रकार, इंश्योरेंस की उपलब्धता और को-एप्लिकेंट या गारंटर की मौजूदगी पर निर्भर करती है। परिवार को चाहिए कि वह समय रहते बैंक से संपर्क कर स्थिति स्पष्ट करे ताकि अनावश्यक परेशानी से बचा जा सके। विशेषज्ञों का कहना है कि लोन लेते समय इंश्योरेंस लेना एक समझदारी भरा कदम हो सकता है, जो भविष्य में परिवार को आर्थिक संकट से बचा सकता है।