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एवरेस्ट छूने वाली हरियाणा की बेटी को नहीं मिला मान सम्मान, मात्र 20.5 घंटे में फहराया था तिरंगा

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रीना भट्टी की कहानी वाकई प्रेरणादायक है। एक छोटे से गांव से निकलकर, सीमित संसाधनों के बावजूद, उन्होंने पर्वतारोहण के क्षेत्र में जो असाधारण उपलब्धियां हासिल की हैं, वह हर भारतीय के लिए गर्व की बात है।

माउंट एवरेस्ट और ल्होत्से पर इतनी कम समय में फतह हासिल करना उनकी अद्भुत शारीरिक क्षमता, दृढ़ संकल्प और अटूट हौसले का प्रमाण है।

यह जानकर दुख हुआ कि इतनी बड़ी उपलब्धि के बावजूद उन्हें राज्य सरकार से अपेक्षित सम्मान और सहयोग नहीं मिला है। निश्चित रूप से, रीना भट्टी जैसी प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करना और उन्हें आगे बढ़ने में मदद करना सरकार की जिम्मेदारी है। उनकी उपलब्धियां न केवल हरियाणा बल्कि पूरे देश की महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं और उन्हें उचित पहचान मिलनी चाहिए।
'हिमपुत्री' के रूप में उनकी पहचान और पिछले पांच वर्षों में 20 से अधिक चोटियों पर विजय, जिनमें कई भारतीय महिलाओं के लिए पहली थीं, उनकी असाधारण प्रतिभा और जुनून को दर्शाती हैं।
ऑक्सफोर्ड बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में उनका नाम दर्ज होना और 'हर घर तिरंगा' अभियान के तहत माउंट एल्ब्रस की दोनों चोटियों पर रिकॉर्ड समय में विजय पाना उनकी अद्वितीय क्षमता को साबित करता है। किर्गिज़स्तान और नेपाल की चुनौतीपूर्ण चोटियों पर भी उनका शानदार प्रदर्शन उनकी पर्वतारोहण कौशल का प्रमाण है।
उम्मीद है कि रीना भट्टी की इस असाधारण उपलब्धि को जल्द ही उचित सम्मान मिलेगा और उन्हें भविष्य में और भी बड़ी ऊंचाइयों को छूने के लिए आवश्यक सहायता प्राप्त होगी। उनकी कहानी युवाओं को अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करती रहेगी, चाहे परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों न हों।
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