बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन बना पहली || संघ की क्या हैं भूमिका
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव ऐसी पहेली बन गया है, जिसे सुलझाने में जितना पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक लगे हैं उतना ही भाजपा के नेता भी लगे हैं। विपक्षी पार्टियां भी देख रही हैं कि आखिर भाजपा में क्या हो रहा है? जेपी नड्डा का कार्यकाल पूरा हुए 14 महीने हो गए हैं
और उनको राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री की दोहरी जिम्मेदारी निभाते हुए भी नौ महीने हो गए। तभी यह समझना मुश्किल है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व और कुछ हद तक राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ भी आखिर क्या चाहते हैं? अगर नड्डा जैसा कोई नहीं मिल रहा है तो नड्डा को ही दूसरा कार्यकाल दे देने में क्या समस्या थी?
भाजपा के संविधान में तीन तीन साल के लगातार दो कार्यकाल का प्रावधान है। सो, पिछले साल जनवरी में ही नड्डा को दूसरा कार्यकाल दे दिया जाता तो कोई समस्या नहीं होती। जाहिर है उनको दूसरा कार्यकाल नहीं देना था तभी उनका कार्यकाल पूरा होने पर उनको सेवा विस्तार दिया गया और पिछले साल जून में केंद्र में सरकार बनने पर उनको मंत्री बनाया गया।
उनके मंत्री बनने के बाद से ही उनके जगह नए अध्यक्ष के आने की चर्चा है। कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर उनको किस्तों में सेवा विस्तार मिल रहा है और अभी उनको 20 अप्रैल तक सेवा विस्तार मिला हुआ है। पहले कहा जा रहा था कि होली से पहले पार्टी का नया अध्यक्ष चुन लिया जाएगा। लेकिन अब 20 अप्रैल तक की समय सीमा दी जा रही है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में देरी का प्रत्यक्ष कारण यह बताया जा रहा है कि अभी आधे राज्यों में संगठन का चुनाव नहीं हुआ है, जो अनिवार्य है। अभी तक 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से सिर्फ 13 जगह प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हुआ है और 23 जगह चुनाव बाकी है।
इसका मतलब है कि कम से कम पांच राज्यों में चुनाव होने के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होगा। इसमें उत्तर प्रदेश जैसा देश का सबसे बड़ा और अहम राज्य भी है, जहां दो साल में चुनाव होने वाले हैं। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। खबर है कि राज्य में संगठन व सरकार दोनों में फेरबदल को लेकर चर्चा हुई है। जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ में किसी नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को यानी प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को जेपी नड्डा जैसा ही अध्यक्ष चाहिए तो दूसरी ओर आरएसएस की अपनी कसौटी है।
इसके मुताबिक ऐसा अध्यक्ष चाहिए, जो संगठन का भरोसमंद और जो आरएसएस के सिद्धांतों पर पार्टी को चलाए। इस खींचतान में अध्यक्ष पद पर नियुक्ति अटकी हुई है। एक जानकार का कहना है कि संघ और भाजपा के बीच शह मात का खेल चल रहा है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व संघ को थका देने की नीति पर काम कर रहा है। ऐसी स्थिति ला देने का प्रयास हो रहा है, जहां जिसको बनाया जाए उसको स्वीकार कर लिया जाए। भाजपा और आरएसएस के पदाधिकारी इस मामले में ज्यादा बात नहीं कर रहे हैं लेकिन मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक संघ की ओर से अपनी राय दे दी गई है। कहा जा रहा है कि जब तक सहमति नहीं बन जाती है तब तक मंथन चलता रहेगा।